दूसरे देशों के बंदरगाहों पर चीन की मौजूदगी
ग्वादर में चीन की नौसेना बैठी है. पर पाकिस्तान इस बात से मना करता रहा है. चीन की नजर बांग्लादेश के बंदरगाह चटगांव पर भी है. दरअसल चीन को अच्छी तरह पता है कि आर्थिक और सैन्य ताकत बनने के लिए समुद्र में मजबूत होना जरूरी है. 1990 के दशक में चीन ने हांगकांग और मकाउ को ब्रिटेन और पुर्तगाल से वापस लिया. इसके बाद चीन दक्षिण चीन सागर से आगे के समुद्री इलाके में अपनी ताकत बढ़ाने में लग गया. चीन ने फैसला लिया कि मलक्का जलडमरूमध्य से आगे के समुद्र में जाएगा. चीन हिंद महासागर से अदन की खाड़ी तक ताकत बढ़ाने लगा. इतिहास बताता है कि चीन ने मल्लका जलडमरूमध्य से नीचे हिंद महासागर में पहले आने की कोशिश नहीं की थी. 15वीं शताब्दी में मिंग वंश के शासकों ने जरूर हिंद महासागर में समुद्री सैन्य अभियान किए थे. ये समुद्री सैन्य अभियान 1405 से लेकर 1430 के बीच हुए थे. सामान्य रूप से चीन की नौसेना की गतिविधि पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर तक ही सीमित थी.
बीसवीं शताब्दी में चीन अपने आंतरिक विकास और कई देशों के साथ भूमि सीमा विवाद को सुलझाने में लगा रहा. हालांकि दक्षिण चीन सागर इलाके में भी चीन कई देशों के साथ उलझता रहा. 21वीं सदी में चीन ने समुद्री सैन्य ताकत बनने का फैसला ले लिया. 2003 में चीन ने मलक्का जलडमरूमध्य को लेकर अपनी दुविधा खत्म कर दी. चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने पार्टी कैडर्स के सामने स्पष्ट किया कि चीन को नुकसान पहुंचाने के लिए मलक्का जलडमरूमध्य को भारत और अमेरिका मिलकर बंद कर सकते हैं, इसलिए चीन को मक्का से आगे के समुद्री इलाके में ताकत बढ़ानी होगी. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में अमेरिका व भारत के बीच संभावित गठजोड़ पर बातचीत हुई. दरअसल चीन ने समुद्र में भारत को हल्के में कभी नहीं लिया. भारत की समुद्री सीमा काफी लंबी है. इसी समुद्री इलाके से चीन का बड़ा व्यापार होता है, चीन के तेल की जरूरतों को इसी रास्ते से पूरा किया जाता है. चीन पश्चिम एशिया से तेल इसी रास्ते से लेकर जाता है. चीन को यह डर रहा है कि भारत कभी भी चीन की इस आपूर्ति संबंधित समुद्री रास्ते को रोक सकता है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्रों पर चीन का बढ़ता हस्तछेप
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री रूट पर भारत के साथ अमेरिकी गठजोड़ से भी चीन भयभीत रहा है. चीन ने 2008 में अदन की खाड़ी में अपनी सेना तैनात की थी. चीन ने इस तैनाती के पीछे सुरक्षित नौवहन का तर्क दिया था. 2013 में शी जिनपिंग के सत्तासीन होते ही चीन ने मैरीटाइम सिल्क रूट को अंतिम रूप दे दिया. चीन ने आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के नाम पर समुद्री रूट को विकसित करने की योजना बनाई. चीन ने इस योजना के तहत पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, जिबूती और सेशल्स में बंदरगाह विकसित करने का फैसला क्या. चीन ने स्वीकार किया कि मैरीटाइम सिल्क रूट का दोहरा उद्देश्य है. मैरीटाइम सिल्क रूट में सुरक्षित आर्थिक नौवहन होगा. इससे चीन की आर्थिक ताकत बढ़ेगी. साथ ही सुरक्षित नौवहन के लिए समुद्री रूटों को सुरक्षित रखा जाएगा. इसके लिए चीन की नौसेना इन रूटों पर पड़ने वाले बंदरगाहों पर तैनात होगी.
चीन वैज्ञानिक अनुसंधान मिशन के नाम पर समुद्री इलाकों में घुसपैठ कर रहा है. चीन का समुद्री विज्ञान अनुसंधान मिशन का उद्देश्य चीन की नौसेना को ज्यादा से ज्यादा समुद्री आंकड़े उपलब्ध करवाना भी है. चीन के समुद्र विज्ञान से संबंधित समुद्री बोट दूसरे विशिष्ट समुद्री आर्थिक क्षेत्र में बिना अनुमति घुस रहे हैं. 2018 और 2019 में भारत के विशिष्ट समुद्री आर्थिक क्षेत्र में चीन के अनुसंधान संबंधी समुद्री बोट बिना अनुमति के प्रवेश कर गए. जबकि भारत ने 1976 में ही एक कानून बनाया जिसमें समुद्री विज्ञान अनुसंधान बोट को भारतीय समुद्री इलाके में घुसने से पहले भारत सरकार से लाइसेंस और अनुमति लेनी होगी. एशिया मैरीटाइम ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव के अध्ययन के मुताबिक चीन वैश्विक वैज्ञानिक अनुसंधान के नाम पर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कई समुद्री सर्वे मिशन शुरू कर चुका है. इन सर्वे मिशन का मुख्य उद्देश्य चीन के आर्थिक और सैन्य हितों का इस्तेमाल करना है.
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