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चीन की मंशा साफ है. वह पड़ोसियों की जमीन हड़पना चाहता है, पर एशियाई देश चीन की विस्तारवाद की मंशा को नजरअंदाज कर रहे है, अगर समय रहते चीन की इस मंशा को एशियाई देश न समझे तो पछताना पड़ सकता है |
इधर लद्दाख सीमा पर भारतीय इलाके में चीन ने घुसपैठ की है. दरसअल चीन अपनी सैन्य ताकत का गलत इस्तेमाल कर विश्व की शांति को चुनौती दे रहा है. चीन के कई पड़ोसी चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान हैं. इसमें चीन के मित्र देश भी शामिल हैं. दिलचस्प बात यह है कि चीन की आक्रमक सैन्य गतिविधियों का विरोध एकजुट होकर एशियाई देश नहीं कर रहे हैं. हालांकि इसके कई कारण हैं, पर समय रहते एशियाई देश नहीं चेते तो चीन का विस्तारवाद कई एशियाई देशों के लिए खतरनाक साबित होगा.
अमेरिकी उप-विदेश मंत्री कीथ क्रैच के ताइवान पहुंचने के बाद चीन परेशान है. कीथ क्रैच अमेरिकी प्रशासन के दूसरे बड़े प्रतिनिधि हैं, जो हाल में ताइवान पहुंचे हैं. इससे पहले अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री अगस्त महीने में ताइवान गए थे. कीथ क्रैच के दौरे से नाराज चीनी लड़ाकू विमानों ने ताइवान के समुद्री इलाकों में घुसपैठ की कोशिश की. चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने ताइवान को धमकी दी.
उधर ताइवान भी सैन्य तैयारी में जुटा हुआ है. चीन की बौखलाहट का तत्काल कारण अमेरिका और ताइवान के बीच बढ़ती सैन्य साझेदारी है. वैसे अमेरिका और ताइवान के बीच 1979 से द्विपक्षीय संबंध नहीं है. अगस्त में अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अजार ने ताइवान की यात्रा की थी. चार दशक बाद कोई अमेरिकी मंत्री ताइवान के दौरे पर गए थे. चीन अजार के दौरे से खासा परेशान था. उस समय भी चीन ने भड़काऊ बयानबाजी की थी. क्योंकि अजार की ताइवान यात्रा ने संकेत यही दिए कि ताइवान स्ट्रेट में अमेरिकी सैन्य गतिविधियां बढ़ेंगी.
चीन की मंशा स्पष्ट है. वो पड़ोसियों की जमीन को हड़पना चाहता है, लेकिन एशियाई देश चीन की विस्तारवाद की मंशा को नजरअंदाज कर रहे हैं. वैसे चीन इस समय सबसे बड़ा खतरा दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए है. अगर समय रहते चीन की मंशा को एशियाई देश नहीं समझे तो पछताएंगे. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की बढ़ती ताकत को एशियाई देश नजर अंदाज कर रहे हैं. नजरअंदाज करने का कारण क्या है, यह समझना मुश्किल है. कई देश चीन के पूंजी निवेश की आशा में चीन के विस्तारवाद का विरोध नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि चीनी विस्तारवाद का शिकार भविष्य में वे देश भी होंगे, जिन्हें चीन की पूंजी से काफी उम्मीद है. दरअसल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी इस समय पूरी दुनिया की शांति के लिए चुनौती बन गई है.
जिस तरह से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी समुद्र में अपना विस्तार कर रही है, उससे वैश्विक शांति को खतरा है. अमेरिकी रक्षा विभाग की इस साल की रिपोर्ट ने समुद्र में चीन की बढ़ती ताकत को खासा खतरनाक बताया है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी नौसेना है. चीन की नौसेना में इस समय 350 समुद्री जहाज और पनडुब्बियां हैं, जबकि अमेरिकी नौसेना के पास 293 समुद्री जहाज हैं, जो चीन से कम हैं. चीन का बैलिस्टिक एवं क्रूज मिसाइल सिस्टम भी दुनिया के लिए चुनौती है. चीन के पास इस समय 1250 बैलेस्टिक एवं क्रूज मिसाइल हैं. अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक इस समय चीन के पास सबसे बड़ा इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम है. पीएलए के इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम में रूस के बने हुए एस-400 एवं एस-300 मिसाइल सिस्टम शामिल है. अमेरिकी रिपोर्ट ने चीन के विदेशों में सैन्य बेस बढ़ाने की योजना पर भी चिंता व्यक्त की है. चीन भविष्य में म्यांमार, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सेशेल्स, तंजानिया, रंगोली और ताजिकिस्तान में सैन्य बेस बनाने की तैयारी कर रहा है. जिबूती में चीन का सैन्य बेस पहले ही है.
21वीं सदी की शुरुआत में चीन ने समुद्र में ताकत बढ़ाने का फैसला लिया था. 2003 में चीन ने मलक्का जलडमरूमध्य को लेकर अपनी दुविधा खत्म कर दी. चीन ने मलक्का से आगे हिंद महासागर, अरब सागर और अदन की खाड़ी तक अपनी ताकत बढ़ाने का फैसला लिया. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में अमेरिका और भारत के बीच संभावित गठजोड़ को लेकर विचार विमर्श हुआ था. चीन को अमेरिका और भारत के गठजोड़ की चिंता थी. चीन एशिया में भारत को हमेशा चुनौती मानता रहा है. क्योंकि भारत एशिया में एक बड़ी शक्ति है, जो चीन को चुनौती दे सकता है. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका से चीन को हमेशा खतरा रहा है. चीन को यही डर रहा है कि मलक्का जलडमरूमध्य को भारत और अमेरिका मिलकर ब्लॉक कर सकते हैं. आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के नाम पर विकसित किए जाने वाले मैरीटाइम सिल्क रूट का मुख्य उद्देश्य चीन की नौसेना को समुद्री नौवहन के रूटों पर मजबूत करना है.
(लेखक-संजीव पांडे)
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